Saturday, April 20, 2024
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बड़ा घोटाला: 2 करोड़ किसानों के दस्तखत,न नाम,न पता,न फोन नम्बर,न आंदोलन वाले किसान ने किये

2 करोड़ हस्ताक्षर लेकर गए थे राहुल गांधी राष्ट्रपति के पास लेकिन आंदोलन करने वाले किसानों ने भी मना कर दिया कि हमने कहीं हस्ताक्षर नही किये।

राहुल गांधी किसान आंदोलन के सपोर्ट में शॉर्ट कट क्यों खोज रहे हैं?

किसानों (Farmers Protest) के लिए मार्च निकालने पर प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को हिरासत में लिया गया. राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला – ये किसानों का सपोर्ट है या महज मोदी विरोध?

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कांग्रेस मुख्यालय से राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च करने वाले थे, लेकिन ऐन वक्त पर दिल्ली पुलिस ने उस जगह धारा 144 लागू कर दिया. पुलिस ने कांग्रेस के उन तीन नेताओं को नहीं रोका जिनके नाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात का समय मिला हुआ था.
राहुल गांधी को जब धारा 144 की बात मालूम हुई तो कांग्रेस मुख्यालय के लॉन में बैठ कर किसी से फोन पर बात करने लगे. फिर प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ करीब आधे घंटे तक नयी रणनीति बनाई.
राहुल गांधी ने तो राष्ट्रपति भवन का रुख कर लिया, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) नहीं मानीं और मार्च निकालने की कोशिश में आगे बढ़ने को हुईं, तभी दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया. पुलिस प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके साथ आये कांग्रेस नेताओं को पकड़ कर मंदिर मार्ग थाने ले गयी. करीब आधे घंटे बाद प्रियंका गांधी को रिहा भी कर दिया गया.
कुछ देर बाद राहुल गांधी राष्ट्रपति से मिल कर बाहर निकले और मीडिया से मुखातिब हुए. प्रधानमंत्री मोदी पर हमले में वजन लाने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत का भी नाम भी ले डाला – ये राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की कांग्रेस के किसानों के समर्थन देने की एक झलकी भर है.
किसानों (Farmers Protest) की आवाज उठाने के लिए राहुल गांधी लंबी यात्राएं भी कर चुके हैं. किसानों के दिल्ली पहुंचने से पहले पंजाब और हरियाणा में आयोजित कांग्रेस की ट्रैक्टर रैली में भी शामिल हुए और ट्रैक्टर भी चलाते दिखे, लेकिन अभी तो ऐसा ही लग रहा है जैसे वो किसानों के नाम पर मोदी विरोध का एजेंडा ही आगे बढ़ाना चाहते हैं – जैसे लगे हाथ किसान आंदोलन को सपोर्ट करने का कोई शॉर्ट कट तरीका खोज रह हों!

किसानों की बात पर फोकस क्यों नहीं?

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने के बाद वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भारत-चीन सीमा विवाद की ओर देश का ध्यान खींचने की कोशिश की. जो लोग किसानों के नाम पर राष्ट्रपति से मुलाकात को लेकर राहुल गांधी के बयान की उम्मीद कर रहे होंगे, कांग्रेस नेता ने उनको निराश तो नहीं किया लेकिन थोड़ा इंतजार जरूर कराया.
राहुल गांधी अपना अपना पुराना आरोप फिर से दोहराया और पूछा – “चीन ने भारत की हजारों किलोमीटर की जमीन छीन ली है और प्रधानमंत्री मोदी उसके बारे में क्यों नहीं कुछ कहते?”
फिर राहुल गांधी ने ये समझाने की कोशिश की कि जो भी मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाएगा, वो आतंकवादी घोषित कर दिया जाएगा. अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का नाम लेकर दावा किया कि मोदी सरकार के खिलाफ बोला तो वो भी बख्शे नहीं जाने वाले.

राहुल गांधी बोले, , “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूंजिपतियों के लिए पैसा बना रहे हैं… जो कोई भी उनके खिलाफ खड़े होने की कोशिश करेगा, आतंकवादी घोषित कर दिया जाएगा – फिर चाहे वो किसान या मजदूर या फिर मोहन भागवत ही क्यों ना हों.”
लगे हाथ ये भी बताया कि कैसे देश का नेतृत्व अक्षम हाथों में होने से हिंदुस्तान कमजोर हो रहा है और सिस्टम को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है – वो भी महज तीन चार लोगों के लिए.

राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को पुलिस के हिरासत में लेने पर भी रिएक्ट किया – ‘हिरासत में लेना और मार-पीटना इस सरकार का यही तरीका है लेकिन हम नहीं डरते इनसे.’
किसानों की बात पर राहुल गांधी ने बताया कि वे तीन लोग करोड़ों किसानों के हस्ताक्षर लेकर उनकी आवाज बन कर राष्ट्रपति से मिलने गये थे, ‘सर्दी का मौसम है और पूरा देश देख रहा है कि किसान दुख में है, दर्द में है और मर रहा है – PM को सुनना पड़ेगा.’
कोरोना वायरस को लेकर अपने फरवरी, 2020 वाले बयान की याद दिलाते हुए राहुल गांधी बोले, ‘मैं अडवांस में बोल देता हूं. मैंने कोरोना पर बोला था कि नुकसान होने जा रहा है. आज फिर बोल रहा हूं कि किसान और मजदूर के सामने कोई ताकत नहीं चलेगी… इससे बीजेपी आरएसएस नहीं, देश को नुकसान होने जा रहा है.’
किसानों के साथ खड़े होने का दावा करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि सरकार भले लगता हो कि किसान और मजदूर घर चले जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं होने वाला. राहुल गांधी ने मोदी सरकार से संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की है.
राष्ट्रपति से मिलने राहुल गांधी के साथ राज्य सभा में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और लोक सभा के नेता अधीर रंजन चौधरी भी गये थे. गुलाम नबी आजाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले G-23 के नेता बने हुए हैं और फिलहाल कांग्रेस में सुधार के लिये असंतुष्टों की अगुवाई कर रहे हैं. गुलाम नबी आजाद को साथ लेकर जाना राहुल गांधी की मजबूरी भी रही क्योंकि वो कांग्रेस पार्टी के कोई पदाधिकारी भी नहीं है, कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद वायनाड से कांग्रेस सांसद के रूप में उनकी पहचान बनी हुई है – कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी की ही चलती होगी, लेकिन सार्वजनिक तौर पर तो औपचारिक स्वरूप भी देखा जाता है.

किसानों से दूरी और आवाज बनने का दावा!

वे जनांदोलन दुर्लभ कैटेगरी में आते हैं जिनको राजनीतिक सपोर्ट हासिल नहीं होता, लेकिन राजनीतिक सपोर्ट भी अगर आधे मन से हो तो आंदोलन मकसद हासिल करने से पहले बीच रास्ते में ही दम तोड़ देता है.
जनांदोलनों के सपोर्ट में राजनीति दल सीधे सीधे शामिल हों कोई जरूरी नहीं है, सपोर्ट किसी भी तरीके से किया जा सकता है. शाहीन बाग के आंदोलन को भी राजनीतिक समर्थन हासिल रहा और अन्ना आंदोलन को भी. शुरू में भले ही इनकार किया गया हो लेकिन धीरे धीरे स्वीकारोक्ति भी सामने आयी ही. जब राजनीतिक दल मुद्दों पर आधारित लोगों के आंदोलन को परदे के पीछे से समर्थन देते हैं तो जरूरतों की कमी आड़े नहीं आती. अन्ना आंदोलन से लेकर हाल के शाहीन बाग तक यही देखने को मिला – और अब किसानों के आंदोलन को भी महीना भर हो रहा है फिर भी किसान मोर्चे पर डटे हुए हैं.
समझ में ये नहीं आता कि कांग्रेस नेतृत्व को किसान आंदोलन से सीधे सीधे जुड़ जाने में दिक्कत क्या है?

कृषि कानूनों के समर्थन में बागपत के किसान मजदूर संघ के 60 किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से दिल्ली स्थित कृषि भवन में मुलाकात की। समर्थन में मुलाकात करने आए किसानों ने केंद्रीय कृषि मंत्री को एक पत्र सौंपा, जिसमें उन्होंने कृषि कानूनों के लिए पत्र के जरिए लिखित समर्थन दिया है।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा, “किसान मजदूर संग, बागपत के प्रतिनिधि कृषि भवन में आए। हमने उनका स्वागत किया। ये सभी किसान कृषि सुधार कानूनों का समर्थन करना चाहते हैं। इन्होंने मुझे समर्थन पत्र भी दिया। उन्होंने कहा कि कृषि सुधार कानूनों में संशोधन के लिए सरकार को दबाव में आने की जरूरत नहीं है।

गौरतलब है कि इससे पहले 22 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र​ सिंह तोमर की किसान संघर्ष समिति और भारतीय किसान यूनियन के नेताओं के साथ भी कृषि भवन में बैठक हुई थी। बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र​ सिंह तोमर ने बताया था कि कुछ किसान यूनियन के पदाधिकारी उनसे मिले और कृषि बिलों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं करने की पैरवी की।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र​ सिंह तोमर ने कहा था, “अनेक किसान यूनियन के पदाधिकारी आए और उनकी ये चिंता है कि सरकार बिलों में कोई संशोधन करने जा रही है। उन्होंने कहा है कि ये बिल किसानों की दृष्टि से बहुत कारगर हैं, किसानों के लिए फायदे में हैं और बिल में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए।”

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