Friday, April 19, 2024
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बर्बादी की कहानी:अनिल अंबानी,टॉप 10 से टॉप 2000 के बाहर का सफर

 

12 साल में सारी दौलत गंवा बैठे अनिल अंबानी: उनके राजनीति में आने से नाराज हुए थे मुकेश अंबानी, वही थी अंत की शुरुआत

अनिल अंबानी की स्थिति यह हो गई कि इस साल ब्रिटेन में एक मामले की सुनवाई के दौरान इस भारतीय कारोबारी के वकीलों को कहना पड़ा कि रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी कभी भारत के अमीर उद्योगपतियों में थे, लेकिन अब नहीं हैं।
फोर्ब्स ने  इस साल दुनियाभर के 2000 अरबपतियों की सूची जारी की। कभी 31 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ देश के टॉप 3 अरबपतियों में शुमार अनिल अंबानी इस सूची में जगह नहीं बना पाए। अनिल अंबानी की यह स्थिति दो या चार साल में नहीं हुई है।

अनिल अंबानी ने पिछले 12 साल में अपनी सारी दौलत गंवा दी। बाजार के जानकारों के अनुसार पारिवारिक बिजनेस में बंटवारे के बाद अनिल अंबानी के लालच ने उन्हें इस हालत पहुंचा दिया है। उनके हिस्से में जो कंपनियां आई थीं, उनपर कम ध्यान देते हुए अनिल अंबानी ने कई नए क्षेत्रों व मेगा प्रोजेक्ट्स में जमकर निवेश किया। खराब कारोबार की वजह से एक के बाद उनकी कंपनियां डूबती चली गईं। कुछ कंपनियां दिवालिया हो गईं तो कुछ को बेच दिया गया।

उदाहण के लिए 2017 में रिलायंस कम्यूनिकेशन ने अपना वायरलेस बिजनेस बंद कर दिया। 2019 में रिलायंस कैपिटल ने अपना म्यूचुअल फंड बिजनेस बेच दिया। इसी तरह इस साल की शुरुआत में रिलायंस पावर 685 करोड़ का लोन चुकाने में डिफॉल्ट हो गई। रिलायंस इंफ्रा भी करीब 150 करोड़ के कर्ज में फंस गई।

येस बैंक ने किया ADAG के हेडक्वार्टर पर कब्जाः इस साल जुलाई में करीब 2900 करोड़ का बकाया लोन नहीं चुकाने की वजह से येस बैंक ने अनिल अंबानी ग्रुप का हेडक्वार्टर पर कब्जा कर लिया। इतना ही नहीं इस साल जून में एसबीआई ने 1200 करोड़ रुपये की कॉरपोरेट लोन की वसूली के लिए अनिल अंबानी को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) में खींचा था।

अनिल अंबानी ने रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस इंफ्राटेल को दिए गए कर्ज के लिए निजी गारंटी दी थी। स्थिति यह हो गई कि इस साल ब्रिटेन में इस भारतीय कारोबारी के वकीलों को कहना पड़ा कि रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी कभी भारत के अमीर उद्योगपतियों में थे, लेकिन अब नहीं हैं।
रिलायंस इंडस्ट्रीज का चेहरा थेः अभिनेत्री टीना मुनीम से शादी करने वाले अनिल अंबानी पारिवारिक बिजनेस के बंटवारे से पहले रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड का चेहरा थे। अनिल अंबानी के पिता व बड़े भाई ने रिलायंस के साम्राज्य को बनाया। अनिल अंबानी की जिम्मेदारी रिलायंस इंडस्ट्रीज के दुनिया भर में मेगा प्रोजेक्ट्स के लिए फंड जुटाना थी। पिता की मौत के बाद मुकेश अंबानी कंपनी के चेयरमैन बने। अनिल अंबानी को सरकार और मीडिया को मैनेज करने का काम दिया गया।

भाई के राजनीति में आने के खिलाफ थे मुकेश अंबानीः अनिल अंबानी साल 2004 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्य सभा के सांसद बने। रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन और बड़े भाई मुकेश अंबानी को उनका राजनीति में आना पसंद नहीं है। मुकेश चाहते थे कि रिलायंस इ़ंडस्ट्रीज निष्पक्ष हो कर अपना बिजनेस करे।  इसके बाद ही दोनों भाइयों के बीच मतभेद की खबरें चर्चा का विषय बन गईं। नवंबर 2004 में दोनों भाइयों के बीच की लड़ाई की खबर मीडिया में विस्फोट के रूप में सामने आई।
दोनों भाइयों के बीच सुलह के लिए आगे आई मांः स्थिति यह हो गई कि दोनों भाइयों की तरफ से एक दूसरे पर खूब आरोप-प्रत्यारोप लगे। यह सब देखकर मां कोकिला बेन दोनों भाइयों के बीच सुलह के लिए आगे आईं। परिवार के व्यावसायिक बंटवारे के बाद जून 2005 में अनिल अंबानी को टेलीकॉम, इंफ्रास्ट्रक्चर और फाइनेंसियल सर्विसेज का बिजनेस मिला। बंटवारे के बाद अनिल अंबानी कई मेगा प्रोजेक्ट्स को लेकर अति महत्वाकांक्षी दिखे। इसके लिए उन्होंने भारतीय बैंकों से खूब लोन लिया।
2006 में सबसे बड़े इंफ्रा प्रोजेक्ट्स के लिए लगाई बोलीः अनिल अंबानी साल 2006 से 2008 के बीच देश के सबसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की बोली को लेकर व्यस्त थे। इसमें दादरी में गैस आधारित मेगा पॉवर प्रोजक्ट,  मेट्रो ट्रेन, कोयला आधारित मेगा पावर प्रोजेक्ट भी शामिल थे। अनिल अंबानी ने एंटरटेनमेंट बिजनेस में भी बड़े पैमाने पर निवेश किया। उन्होंने हॉलीवुड फिल्मेकर स्टीवन स्पीलबर्ग की कंपनी ड्रीम वर्क्स को 83.5 करोड़ डॉलर में खरीद लिया।

 

रिलायंस पावर ने बदली किस्मतः साल 2007 में अनिल अंबानी ने रिलायंस पावर के शेयर को बिक्री के लिए लॉन्च किया। अधिक प्रीमियम के बावजूद निवेशकों ने इसमें जोरदार उत्साह दिखाया। कंपनी के शेयरों की बिक्री और रिलायंस पावर की लिस्टिंग से अनिल अंबानी देश के अरबपतियों की लिस्ट में टॉप में शामिल हो गए। साल 2007-2008 में उनकी संपत्ति और मुकेश अंबानी की नेटवर्थ में बहुत कम का ही अंतर था।
(देव चटर्जी और सुधा पी. चटर्जी की किताब The Meltdown: India Inc’S Biggest Implosions के अंश पर आधारित)

 

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