Thursday, March 28, 2024
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लापता हैं 613 मस्जिदों के इमाम,कैद में 18 लाख मुसलमान, सबकी आवाज बन्द

नॉर्वे में रहने वाले इंटरनेशनल सिटीज़ ऑफ़ रिफ्यूज नेटवर्क (ICORN) के अब्दुवेली अयुप ने बताया कि शिनजियंगा के उइगरों से बातचीत के बाद यह तथ्य सामने आया। इससे पता चला कि करीब 613 इमाम गायब हैं। 2017 से ही करीब 18 लाख उइगरों और अल्य अल्पसंख्यक मुस्लिमों को कैंपों में कैद करके रखा गया है।

वाशिंगटन स्थित उइगर मानवाधिकार प्रोजेक्ट (UHRP) द्वारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। वेबिनार का विषय था: कहॉं हैं इमाम, उइगर धार्मिक हस्तियों को बड़े पैमाने पर हिरासत में रखने के साक्ष्य। अयूप ने बताया कि उन्होंने 2018 में मई से नवंबर के बीच उइगरों से बातचीत की। इससे पता चला कि इमामों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया गया है।

उइगर समुदाय की भाषा में शिक्षा को बढ़ावा देकर सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के लिए लड़ने की वजह से अयुप को 2013-2014 के दौरान महीनों तक कैद में रह कर यातनाएँ झेलनी पड़ी थी। उन्होंने कैंपों में रह चुके 16 कैदियों से भी बातचीत की थी जिन्होंने बताया कि शिनजियांग में उइगरों को हिरासत में लेने की घटनाओं में इजाफा हुआ है।
नीदरलैंड में अब निर्वासित जीवन बिता रहे एक कैदी ने बताया था कि शिनजियांग की राजधानी उरुमकी के कैंपों में तो जाने के लिए इतनी भीड़ है कि लोगों को पंजीकरण करने के बाद इंतजार करना पड़ता है। जब कोई मर जाता है तो दूसरा कैदी अंदर भेजा जाता है। उनकी मस्जिदें ध्वस्त कर दी गई हैं। इमाम गिरफ्तार हो चुके हैं। यहॉं तक कि मौत के बाद इस्लामिक तरीके से दफनाने तक का अधिकार नहीं है।

लंदन यूनिवर्सिटी की स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (SOAS) में प्रोफेसर रैशेल हैरिस ने बताया कि उइगर समुदाय के सिर्फ पुरुष इमामों को ही निशाना नहीं बनाया जा रहा है। औरतों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। इस मुद्दे पर कहना था कि ऐसे इमाम जो पुरुष हैं, सिर्फ वही ऐसे धार्मिक चेहरे नहीं हैं जिन्हें उइगर समाज में निशाना बनाया जा रहा है। रैशेल ने कहा, “वह मस्जिदों में सक्रिय नहीं होती हैं स्वाभाविक तौर पर उनकी भूमिका घरों में अहम होती है। लेकिन वह हर ज़रूरी काम काम करती हैं जो पुरुष इमाम करते हैं। वह (महिला इमाम) महिलाओं की मदद करती हैं इसलिए वह महिलाओं के अंतिम संस्कार में भूमिका निभाती हैं। वह बच्चों को कुरान पढ़ाने में मदद करती हैं। इसके अलावा वह सामजिक विवादों को सुलझाने में भी काफी मदद करती हैं।”

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