सुब्रमण्यम स्वामी ने इस मामले में फिर से जाँच की माँग करते हुए कहा है कि 26/11 का मुंबई आतंकी हमला UPA (मनमोहन-सोनिया गाँधी सरकार) और ISI का ज्वाइंट ऑपरेशन था। जिसका मकसद RSS को बैन करना और हिंदुत्व को आतंकवाद से जोड़ना था।
26/11 Terror Act was a ISI & UPA joint operation to launch Hindu Terror operation and ban RSS. It fizzled because a brave Policeman caught Kasab alive. All ten others were killed. They were dressed as Hindus would be. A new investigation necessary.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) February 18, 2020
इस्माइल मारा गया, मरने वाला था अजमल कसाब भी… उस दिन संजय गोविलकर न होते तो 26/11 होता ‘हिंदू आतंकवाद’
संजय गोविलकर की सूझबूझ की वजह से जिंदा पकड़ा गया था आतंकी अजमल कसाब
आज मुंबई हमले की 13वीं बरसी है। लोग आज भी 26 नवंबर 2008 के उस काले दिन को नहीं भूले हैं जब पाकिस्तानी आतंकियों ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को बंधक बना लिया था। इतना ही नहीं इस आतंकी हमले का दोष हिंदुओं के सिर पर डालने की भी पूरी तैयारी की गई थी। लेकिन मुंबई पुलिस इंस्पेक्टर संजय गोविलकर के सूझबूझ ने इसे विफल कर दिया था। उनके कारण ही पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब जिंदा पकड़ा गया था। इसका खुलासा मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे राकेश मारिया ने अपनी एक किताब में किया है।
इससे पता चलता है कि अगर उस दिन आतंकवादी कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो भारत समेत पूरी दुनिया इस घटना को ‘हिंदू आतंकवाद’ मान रही होती। 26/11 हमले को अंजाम देने वाला पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने इसे भारत के ही हिंदुओं की ओर से किए गए आतंकवादी हमले का रूप देने की बेहद खतरनाक साजिश रची थी।
अजमल कसाब को हिंदू बनाकर मुंबई की सड़कों पर खून बहाने के लिए उतारा गया था। उसके हाथ में कलावा (लाल धागा) बँधा था और उसे एक हिंदू नाम दिया गया। कसाब समेत सभी 10 हमलावरों को नकली आईकार्ड के साथ हिंदू बनाकर मुंबई भेजा। कसाब को समीर चौधरी जैसा हिंदू नाम दिया गया, ताकि मारे जाने के बाद उसकी पहचान हिन्दू के तौर पर हो और ऐसा लगे कि इस हमले में ‘हिंदू आतंकवाद’ का हाथ था।
ऐसा होने पर यह प्रचारित किया जाता कि ‘भगवा आतंकवाद’ के नाम पर लोगों का खून बहाया जा रहा है। इसके पीछे आरएसएस है। इतना ही नहीं, कुछ विदेशों से पोषित पत्रकार और समाजिक कार्यकर्ता इस थ्योरी को सच साबित करने के लिए समीर चौधरी का घर और पता ठिकाना ढूँढ़ने में लग जाते और आखिरकार उसे समीर चौधरी साबित कर ही दिया जाता। मगर गोविलकर की होशियारी और सतर्कता ने उसकी कलई खोल दी और पाकिस्तान की ‘हिंदू आतंकवाद’ की प्लॉटिंग धरी की धरी रह गई।
हमले के समय गोविलकर डीबी मार्ग पुलिस थाने में तैनात थे। उन्हें गिरगाँव चौपाटी पर नाकाबंदी करने को कहा गया था। यहीं पर उनकी टीम की भिड़ंत अजमल कसाब और उसके साथी इस्माइल के साथ हुई थी। दोनों आतंकी एक छीनी हुई स्कोडा कार से वहाँ पहुँचे थे। आतंकियों की फायरिंग में कॉन्स्टेबल तुकाराम ओंबले बलिदान हो गए। ओंबले ने अपने सीने पर 40 गोली खाई थी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में इस्माइल मारा गया। साथी को घायल देख अन्य पुलिसकर्मी भी बौखला गए और उसे मारने के लिए आगे बढ़े। पुलिसकर्मी कसाब को भी मारने आगे बढ़े लेकिन गोविलकर ने उन्हें समझाया और सलाह दी कि उसे मत मारो, वही तो सबूत है।
गोविलकर ने इस सारे घटनाक्रम पर कहा था, “अगर एक पल की भी देरी हुई होती तो कसाब भी पुलिस की गोली से मारा जाता। कसाब के जिंदा पकड़े जाने से ही उस रात पता चल सका कि आतंकी पाकिस्तान से आए थे और मुंबई पर हमला करने की साजिश पाकिस्तान में रची गई थी।” ये तमाम जानकारी उस रात न मिल पाती अगर संजय गोविलकर कसाब को जिंदा न पकड़वाते। गोविलकर को इस बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पदक से भी नवाजा गया था।
मजहबी कट्टरपंथ के बचाव में अक्सर आपने ‘आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता’ वाली दलील सुनी होगी। पर क्या 26/11 हमले में शामिल रहा कसाब यदि ‘समीर चौधरी’ बनकर ही मरा होता तो क्या यही ‘बुद्धिजीवी’ और कॉन्ग्रेसी तब भी कहते कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता? यकीनन नहीं। वे हिंदुओं को बदनाम करने का प्रोपेगेंडा हाथों हाथ लेते।
इसके बावजूद कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने आरएसएस पर साजिश का आरोप लगाया था। हिंदू विरोधी अजीज बर्नी ने ‘26/11 RSS की साज़िश’ नाम की किताब लिखी थी। खास बात ये है कि इस किताब का विमोचन दिग्विजय सिंह ने ही किया था। वैसे भी ‘हिंदू आतंकवाद’ कॉन्ग्रेस का पसंदीदा टू लाइनर रहा है और दिग्विजय सिंह इसके चैंपियन रहे हैं। वह कई बार हिंदू आतंकवाद की थ्योरी प्लांट करने की नाकाम कोशिश भी कर चुके हैं।
मारिया ने अपनी किताब में लिखा, ‘अखबारों में बड़ी बड़ी सुर्खियां बनतीं जिनमें दावा किया जाता कि किस प्रकार हिंदू आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला किया।’ शीर्ष टीवी पत्रकार उसके परिवार और पड़ोसियों से बातचीत करने के लिए बेंगलुरु पहुंच जाते। लेकिन अफसोस, ऐसा नहीं हो सका वह पाकिस्तान में फरीदकोट का अजमल आमिर कसाब था। उन्होंने यह भी कहा कि मुंबई के कांस्टेबल शहीद तुकाराम ओम्बले द्वारा कसाब को जिंदा पकड़ लेने से वह योजना नाकाम हो गयी।
गौरतलब है कि 26 नवंबर, 2008 को हुए मुंबई आतंकी हमले में 166 लोगों की जान गई थी। वहीं, 300 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस हमले में आतंकी कसाब जिंदा पकड़ा गया और 21 नवंबर 2012 को फांसी पर लटका दिया गया।
पाकिस्तान से आए आतंकियों ने आज ही दिन मुंबई में खून खराबा मचाया था, जिसमें 166 लोगों की जान चली गई थी, जबकि 600 से अधिक लोग घायल हो गए थे। 26 नवंबर 2008 को इस वारदात को पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों अंजाम दिया था, जिसमें से एक अजमल आमिर कसाब भी था। अन्य 9 आतंकी तीन दिनों तक चले हमले के दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए थे। केवल कसाब ही जिंदा पकड़ा गया था, जिससे न केवल हमले के पीछे पाकिस्तान की साजिश का खुलासा हुआ, बल्कि भारतीय एजेंसियों को इस बारे में गई अन्य जानकारियां भी हासिल हुईं।
कसाब के जिंदा पकड़े जाने से ही इसका भी खुलासा हुआ कि जो 10 आतंकी पाकिस्तान से ‘अल हुसैनी’ नामक नाव के जरिये मुंबई में दाखिल हुए थे, उनमें सभी के पास फर्जी पहचान-पत्र थे और ये हिन्दुओं के नाम पर थे। इसके पीछे मकसद यह था इसे हिन्दू आतंकवाद का नाम दिया जा सके। खुद कसाब के पास भी फर्जी पहचान-पत्र था, जिसमें उसका नाम समीर दिनेश चौधरी बताया गया था और उसके घर का पता बेंगलुरु के नगरभावी इलाके में टीचर्स कॉलोनी को बताया गया।
कसाब ने हाथों पर बांधा था कलावा
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने अपनी किताब ‘लेट मी से इट नाऊ’ (Let Me Say It Now) में विस्तार से इन सबके बारे में बताया है। उनकी यह किताब इसी साल फरवरी में सामने आई थी, जिसमें उन्होंने मुंबई हमलों को लेकर कई खुलासे किए। इसी में उन्होंने बताया है कि कसाब के पास समीर दिनेश चौधरी नाम का फर्जी पहचान-पत्र मिला तो उसने खुद को हिन्दू पहचान देने के लिए हाथों पर कलावा भी बांध रखा था, जबकि उसके घर का पता बेंगलुरु में बताया गया था।
मारिया ने अपनी किताब में कसाब के बारे में लिखा है कि अगर उस रात वह मर गया होता तो वह एक हिन्दू आतंकी के तौर पर मरा होता, क्योंकि उसके पास से ऐसे ही पहचान-पत्र बरामद होते, जो पूरी तरह फर्जी थे। अखबारों की हेडलाइंस मुंबई पर एक हिंदू आतंकी द्वारा हमला किए जाने के बारे में बता रही होती और टीवी पत्रकारों का समूह बेंगलुरु में उस फर्जी पते पर एकत्र होकर उसके कथित घरवालों और पड़ोसियों से सवाल कर रहे होते। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
हाथों में AK-47 लिए और मुंबई के पुलिस थाने की दो तस्वीरों के जरिये भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तान को यह संदेश दे दिया था कि कसाब कब्जे में है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया था, क्योंकि पाकिस्तान हमले की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर रहा था और शुरुआत में उसने कसाब को अपना नागरिक तक मानने से इनकार कर दिया था। पाकिस्तान की मीडिया में इसका खुलासा होने के बाद कि कसाब फरीदकोट का रहने वाला है, पाक सरकार ने उसे अपना नागरिक माना था। कसाब को 21 नवंबर 2012 को सुबह 7.30 बजे पुणे की यरवडा जेल में फांसी दी गई थी