Thursday, March 28, 2024
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मुसलमान औरतों की नई परेशानी,तलाक़ ए हसन,मामला सुI कोर्ट में

 

Talaq-E-Hasan: बीते कुछ दिनों से तलाक-ए-हसन का मुद्दा चर्चा में बना हुआ है. 17 जून को जहां सुप्रीम कोर्ट को 5 जजों की बेंच ने तलाक-ए-हसन के खिलाफ दायक की गई याचिका पर सुनवाई की थी वहीं एक बार मुंबई की एक मुस्लिम महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. इस मामले को लेकर पहले भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट में भी तलाक-ए-हसन के खिलाफ एक महिला ने याचिका दायर की थी जिसपर जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने दिल्ली पुलिस के साथ-साथ उस मुस्लिम व्यक्ति से जवाब मांगा जिसकी पत्नी ने तलाक-ए-हसन के नोटिस को चुनौती देते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

क्या होता है तलाक-ए-हसन, क्यों हो रहा है विरोध

तीन तलाक की तरह ही तलाक-ए-हसन मुस्लिम समुदाय से जुड़ी तलाक की एक प्रक्रिया है, जिसमें पति अपनी पत्नी को तीन महीने में तीन बार एक-एक कर तलाक बोलता है और उसके बाद तलाक मान लिया जाता है. पति एक महीने में एक बार तलाक बोलता है. फिर दूसरे महीने में दूसरी बार तलाक बोलता है. फिर तीसरे महीने में  तीसरी बार तलाक बोलता है.

बता दें कि तलाक बोले जाने वाले इन तीन महीनों के दौरान शादी तो लागू रहती है, लेकिन अगर इन तीन महीनों के अदंर पति-पत्नी में सुलह नहीं होती है और पति तीन महीने में तीन बार तलाक बोल देता है तो तलाक मान लिया जाता है. लेकिन वहीं अगर दोनों के बीच इस बीच सुलह हो जाती है तो शादी नहीं टूटती.

तीन तलाक में तीन बार बोलना होता था तलाक

साल 2017 में ट्रिपल तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को शायरा बानो बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था. इसमें मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को एक बार में तीन तलाक बोलता था और शादी खत्म हो जाती थी. इसे असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने राहत की सांस ली थी. मगर तीन तलाक क ही तरह तलाक-ए-हसन का मामला भी सामने आया है जिसके खिलाफ याचिकाएं दायर की जा रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन पर लिया था संज्ञान

इससे पहले, जस्टिस ए एस बोपन्ना और विक्रम नाथ की सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ ने तलाक-ए-हसन मामले पर याचिकाकर्ता बेनज़ीर हीना द्वारा प्रस्तावित प्रस्तावों पर ध्यान दिया था, जिसमें महिलाओं के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ असंवैधानिक और प्रतिगामी के रूप में प्रथा को खत्म करने की मांग की गई थी.

तलाक-ए-हसन की क्या है प्रक्रिया

तलाक-ए-हसन भी तीन तलाक की  ही तरह की प्रक्रिया है लेकिन ये तब प्रयोग की जानी चाहिए जब पत्नी को मासिक धर्म नहीं हो रहा हो और तीनों घोषणाओं में से प्रत्येक के बीच एक महीने का अंतराल होना चाहिए. इस तरह से दोनों के बीच परहेज की अवधि इन तीन लगातार तलाक के बीच की समय सीमा में होनी चाहिए. संयम, या ‘इद्दत’ 90 दिनों यानी तीन मासिक चक्र या तीन चंद्र महीनों के लिए निर्धारित होता है. इस संयम की अवधि के दौरान, यदि पति या पत्नी अंतरंग संबंधों में सहवास करना या साथ रहना शुरू कर देते हैं, तो तलाक को रद्द कर दिया जाता है. इस प्रकार के तलाक को स्थापित करने का उद्देश्य तात्कालिक तलाक की बुराई को रोकना था, लेकिन इसके साइड इफेक्ट सामने आ रहे हैं.

तलाक-ए-हसन से महिला को नहीं कर सकते मजबूर

कई मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक प्रणाली के माध्यम से तलाक के बहाने अपने ससुराल वालों द्वारा शारीरिक शोषण और हिंसक धमकियों के मामले दर्ज किए हैं. याचिका में संबंधित धार्मिक नेताओं को तलाक-ए-हसन को अमान्य करने और किसी भी महिला को शरिया कानून के तहत प्रचलित तलाक का पालन करने के लिए मजबूर नहीं करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.
यहां याचिकाकर्ता ने अपने पति द्वारा भेजे गए पहले तलाक के नोटिस को अमान्य और असंवैधानिक करार देने के लिए अदालत का रुख किया है क्योंकि यह उसके उचित अधिकारों का उल्लंघन है.

कानूनी स्थिति क्या है?

2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो बनाम भारत संघ के मामले में तलाक-ए-बिदत को असंवैधानिक घोषित किया गया था. इस प्रकार के तलाक में, तीन तलाक में पुरुष पुरुष एक ही बार में तीन बार तलाक की घोषणा करता है, जबकि तलाक-ए-हसन में तीन बार में तीन तलाक कहकर शादी खत्म की जाती है. तलाक-ए-हसन के नाम से जानी जाने वाली इस्लामी तलाक प्रक्रिया को जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर अदालत में चुनौती दी गई है.

की गई है मांग-खत्म कर दें तलाक-ए-हसन की प्रथा

याचिकाकर्ता बेनज़ीर हीना ने तलाक के इस्लामी रूप तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक घोषित करने के लिए एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से एक याचिका दायर की, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करता है. हिना ने कोर्ट से गुहार लगाई  कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2, जो मुसलमानों को एकतरफा तलाक का अभ्यास करने की अनुमति देती है, को खत्म कर देना चाहिए.

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